प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी ईडी को हिरासत में पूछताछ करने के उसके अधिकार का प्रयोग करने और नौकरियों के बदले नकदी घोटाले में ”सच्चाई सामने लाने” से रोक रहे हैं। न्यायालय ने द्रमुक नेता और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया।
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश की पीठ ने कथित घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में उनकी गिरफ्तारी को बरकरार रखने के मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मंत्री और उनकी पत्नी मेगाला की याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
पीठ ने ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और मामले में द्रमुक नेता और उनकी पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी की दलीलें सुनीं।
सिब्बल और रोहतगी की दलीलों का जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ईडी को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (जो जांच और आरोपी की हिरासत से संबंधित है) के तहत किसी आरोपी से हिरासत में पूछताछ करने का पूरा अधिकार है।
दूसरी ओर रोहतगी ने बुधवार को अपना दावा दोहराया कि ईडी के अधिकारी पुलिस अफसर नहीं हैं और इसके अलावा, एजेंसी के पास धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत हिरासत में किसी आरोपी से पूछताछ करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा, ”सच्चाई को सामने लाना” सिर्फ जांच एजेंसी का अधिकार नहीं है, बल्कि मंत्री द्वारा कथित तौर पर किए गए अपराध के पीड़ितों के प्रति कर्तव्य भी है।
उन्होंने कहा, ”यह एक ऐसा दायित्व है जिसे हस्तक्षेपकारी परिस्थितियों के कारण ईडी को निभाने की अनुमति नहीं दी गई।” सीआरपीसी की धारा 167 का जिक्र करते हुए कानून अधिकारी ने कहा कि यह पीएमएलए पर लागू होती है।
ईडी ने बालाजी को 14 जून को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद भी बालाजी तमिलनाडु सरकार में बिना विभाग के मंत्री के तौर पर पदस्थ हैं।